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ट्रंप की नई एच-1बी नीति से मची खलबली: 'स्वर्ण युग' खत्म, भारतीय प्रोफेशनल्स में डर का माहौल

अमेरिका में रह रहे हजारों भारतीय और अन्य अंतरराष्ट्रीय तकनीकी पेशेवारों के लिए हाल के दिन बेहद चिंता भरे रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा सितंबर में एच-1बी वीजा के आवेदन शुल्क को अचानक बढ़ाकर 1 लाख डॉलर (लगभग 74 लाख रुपये) करने के फैसले ने एक तूफान खड़ा कर दिया है। यह कदम, जिसे "अमेरिका फर्स्ट" की नीति का हिस्सा बताया जा रहा है, ने अमेरिका में काम कर रहे विदेशी कर्मचारियों के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

क्या है पूरा मामला?

सितंबर 2020 में, ट्रंप प्रशासन ने एक कार्यकारी आदेश जारी किया, जिसमें कुछ विशेष शर्तों वाली कंपनियों के लिए नया एच-1बी वीजा लेने का आवेदन शुल्क बढ़ाकर 1 लाख डॉलर कर दिया। यह शुल्क मुख्य रूप से उन कंपनियों पर लागू होता है जिनके 50% या अधिक कर्मचारी एच-1बी या एल-1 वीजा धारक हैं। इसका सीधा असर भारतीय आईटी सेवा कंपनियों और उनके कर्मचारियों पर पड़ेगा।

एक वायरल पोस्ट ने जताई आशंका

इस पृष्ठभूमि में, एक एच-1बी धारक तकनीकी कर्मचारी की सोशल मीडिया पोस्ट ने पूरे समुदाय की भावनाओं को शब्द दिए। पोस्ट में उन्होंने लिखा, "मुझे लगता है कि इस बार सब खत्म हो गया है... हमने कड़ी मेहनत की, कभी भी उस भेदभाव का पालन नहीं किया जिसका हम पर आरोप लगाया जाता है... अच्छे और ईमानदार इंसान बनने की कोशिश की, लेकिन हमें निशाना बनाया जा रहा है।"

उन्होंने आगे कहा कि एच-1बी का "स्वर्ण युग" समाप्त हो चुका है और लोगों को वापसी की योजना बनानी शुरू कर देनी चाहिए। इस पोस्ट पर सैकड़ों लोगों ने सहमति जताई, जिससे साफ जाहिर होता है कि यह डर गहरा और व्यापक है।

अमेरिकी प्रशासन का तर्क: दुरुपयोग रोकना

अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने इस कदम को सही ठहराते हुए एच-1बी कार्यक्रम को "सबसे अधिक दुरुपयोग किया जाने वाला इमिग्रेशन कार्यक्रम" बताया। अमेरिकी सरकार और इस नीति के समर्थकों के मुख्य तर्क ये हैं:

  1. अमेरिकी नौकरियों की रक्षा: उनका मानना है कि कुछ कंपनियां कम वेतन पर विदेशी कर्मचारियों को रखकर अमेरिकी नागरिकों के लिए मौके खत्म कर रही हैं।
  2. वेतन में असमानता: आरोप है कि एच-1बी कर्मचारियों को कम वेतन दिया जाता है, जिससे अमेरिकी कर्मचारियों के वेतन स्तर पर दबाव पड़ता है।
  3. कार्यक्रम का सुधार: उनका कहना है कि यह कदम वीजा के दुरुपयोग को रोककर कार्यक्रम को और अधिक कुशल एवं निष्पक्ष बनाने के लिए है।

दूसरी तरफ: एच-1बी धारकों की चिंताएं

वहीं, एच-1बी वीजा धारक और उनके समर्थक इस नीति को अनुचित और हानिकारक मानते हैं:

  1. निवेश का अपमान: उनका कहना है कि वर्षों तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था में योगदान देने और करों का भुगतान करने के बाद अचानक उन्हें "अवांछित" घोषित कर दिया गया है।
  2. भेदभाव का आरोप: वे इस बात से आहत हैं कि उन पर "अमेरिकी नागरिकों के साथ भेदभाव" का आरोप लगाया जा रहा है, जबकि उनका कहना है कि उन्होंने हमेशा योग्यता के आधार पर काम किया है।
  3. अनिश्चित भविष्य: इस तरह के फैसलों से उनके करियर, परिवार और अमेरिका में उनके दीर्घकालिक जीवन की योजनाएं धूमिल हो गई हैं।

तथ्य और आंकड़े:

  1. एच-1बी वीजा एक गैर-आप्रवासी वीजा है जो अमेरिकी नियोक्ताओं को विशेष व्यवसायों में विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करने की अनुमति देता है।
  2. हर साल सिर्फ 85,000 नए एच-1बी वीजा जारी किए जाते हैं (65,000 रेगुलर + 20,000 U.S. मास्टर्स डिग्री धारकों के लिए)।
  3. अमेरिकी सरकार के आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019 में जारी किए गए सभी एच-1बी वीजा में से लगभग 67% भारतीय नागरिकों को मिले।

अमेरिका और भारत के लिए फायदे और नुकसान (Pros and Cons)

अमेरिका के लिए:

फायदे (Pros):

  • अमेरिकी कर्मचारियों के लिए नौकरियों के अवसर बढ़ सकते हैं।
  • कंपनियों पर दबाव बनेगा कि वे घरेलू प्रतिभा को प्राथमिकता दें और उन्हें ट्रेन करें।
  • वीजा के दुरुपयोग पर अंकुश लग सकता है।

नुकसान (Cons):

  • तकनीकी क्षेत्र में प्रतिभा की कमी हो सकती है, खासकर STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्रों में।
  • नवाचार और प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंच सकता है।
  • बड़ी tech कंपनियों को प्रोजेक्ट्स में देरी और लागत वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।

भारत के लिए:

फायदे (Pros):

  • प्रतिभा का पलायन (Brain Drain) कम हो सकता है, क्योंकि कुशल पेशेवर भारत में ही रहने या लौटने को प्रोत्साहित होंगे।
  • भारतीय आईटी कंपनियों को अमेरिका से काम आउटसोर्स करने का मौका मिल सकता है।
  • घरेलू इनोवेशन इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए प्रतिभा उपलब्ध हो सकती है।

नुकसान (Cons):

  • अमेरिका में काम करने वाले भारतीयों और उनके परिवारों की आय और जीवनशैली पर सीधा असर पड़ेगा।
  • भारत से विदेशों को जाने वाले रेमिटेंस (धन प्रेषण) में कमी आ सकती है, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है।
  • भारतीय आईटी कंपनियों, जिनकी अमेरिकी बाजार पर बड़ी निर्भरता है, के राजस्व पर गंभीर असर पड़ सकता है।

निष्कर्ष:

ट्रंप प्रशासन की यह नीति केवल आवेदन शुल्क बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अमेरिकी आव्रजन नीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है। इसने हजारों मेहनती पेशेवरों के भविष्य को अनिश्चितता में डाल दिया है, जिन्होंने अमेरिकी अर्थव्यवस्था और तकनीकी वर्चस्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जहां एक ओर अमेरिका में रोजगार के मुद्दे वाजिब हैं, वहीं दूसरी ओर एक पूरे समुदाय को एकाएक "अवांछित" घोषित करना एक जटिल मानवीय और आर्थिक समस्या पैदा कर रहा है। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह नीति अमेरिकी अर्थव्यवस्था और भारत-अमेरिका के रिश्तों को किस तरह प्रभावित करती है।

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